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कर के दफ़न तू अपने दिल मे

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 तेरी गली से शुरू हुआ था, वो जो एक इश्क़-ए-सफर, फिर तो हर शब रहे दर बदर, आवारा ! मैं और मेरी आवारगी, हर वक्त,  हर शाम-ओ-सहर, अब करके दफ़न तू अपने दिल मे, सोने दे मुझे खुदा-ए-बरतर के घर                               - अभय सुशीला जगन्नाथ