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कांधे-कन्हइया

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  आज फिर तेरी कमी, मैंने अपने अंदर पाया, उसी सरयू-गंगा संगम पे, यूँ ही मैं चला आया, जिस घाट अंतिम कांधे, तुमको था लेकर आया, उसी घाट फिरसे तुमने, कांधे-कन्हइया घुमाया                                            - अभय सुशीला जगन्नाथ  आज फिर तेरी कमी, मैंने अपने अंदर पाया, उसी सरयू-गंगा संगम पे, यूँ ही मैं चला आया, जिस घाट मैं अंतिम कांधे, तुमको था लेकर आया, उसी घाट फिरसे तुमने, मुझको कांधे-कन्हइया घुमाया                                                        - अभय सुशीला जगन्नाथ  सरयू-गंगा संगम पे जब, यूँ ही मैं चला आया, फिर वही तेरी कमी, मैंने अपने अंदर पाया, जिस घाट अंतिम कांधे, तुमको था लेकर आया, उसी घाट फिरसे तुमने, कांधे पे कन्हइया घुमाया fathersday                          - अभय सुशीला जगन्नाथ