Saraswati ! The Pious, Divine ! Sadhana... The Beauteous, Valentine !
सरस्वती ! उज्ज्वल सफेद ! और उसकी साधना... सफ़ेद सूट में , कश्मीर वादियों बीच ! पतझड़ के चिनार के पेड़ों की पृष्ठभूमि में , एक अविस्मरणीय खूबसूरती ... आपकी अंतरात्मा तक उतरती रूहानी अलाप , निःसंदेह , लता जी की और किसकी ! परन्तु उस के पहले सैक्सोफोन के विरह धुन की गहराई , और फिर अंतरे में यह लाइने ... कभी हम साथ गुजरे जिन सजीली राहगुजारों से, ख़िज़ाँ के भेस में गिरते हैं अब पत्ते चनारों से, ये राहें याद करती हैं, ये गुलशन याद करता है... और फिर दुबारा वही कालजयी सैक्सोफोन का विरह धुन, अविस्मरणीय ! हसरत जयपुरी के लिखे तीन पंक्तियों के कारण, एक राइटर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के रूप में अपनी पहली फिल्म " आरज़ू " बनाने वाले, रामानंद सागर को, वही अपने " रामायण " वाले रामानंद सागर को सब कुछ परफेक्ट चाहिए था, आखिर पंजाब यूनिवर्सिटी के संस्कृत और फ़ारसी के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र जो ठहरे ! इसलिए झील किनारे बेमौसम फूलों के लिए तो उन्होंने कृत्रिम फूल " हॉंकॉंग " से मंगवा लिए थे , परन्तु पत...