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लाल चाय के ग्लास संग दो रोटी !

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 DLW के बचपन का 80 का दशक,  और रूटीन कार्यक्रम... सबसे पहले सुबह 6 बजे पापा जी ड्यूटी के लिए निकलते और मैं जीने/सीढ़ी की अवाज पर कान गड़ा कर सुनता कि कब केरकेट्टा चाचाजी उसके बाद ड्यूटी के लिए निकलते हैं,  आज भी सीढ़ियों से उतरने की आवाज ताज़ी है और ज़हन में वो यादें जिनमें चाचाजी कंधे पर साइकिल रखकर या तो खुद लेकर उतारते थे ... या फिर बारी बारी से कभी जॉन, कभी जेवियर या फिर कभी मेरा जिगरी दोस्त अविनाश ! और चाचाजी के जाते ही, मेरे पाँव बिना रुके, सीधे एक-एक सीढ़ी एक्स्ट्रा फांदकर सरपट जलाली-पट्टी के क्वार्टर 582/F से क्षण भर में 582/A में पहुँच जाते ! और फिर किचन से चाचीजी की आवाज़ आती !  नाश्ता करेगा जेलर ! और मैं मन ही मन सोचता, अविनाश से तो बाद में भी मिल सकते थे, लेकिन वो सुबह का अद्भुत नाश्ता, जिसका स्वाद और जायका आज भी ज़बान पर तरोताजा है, वो तो सुबह-सुबह ही मिलेगा, इसलिए ही तो आया हूँ ! लाल चाय के ग्लास संग दो रोटी ! हम सब बच्चों का उनके घर पर रोजाना का नाश्ता, कभी-कभी साथ में आमलेट या उबला अंडा भी होता था ! बचपन के भोलेपन की चालाकियां कितनी नादाँ होती हैं, ये...