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Showing posts from April, 2025

कौन कहता है कि कोई भी आता नहीं कभी मरकर

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दस्तक फ़िर क्यूँ दे रहा, कोई दिल को रह-रह कर, और नफ़्स बन दौड़ रहा, रग-रग मेरे लहू बन कर, जबकि सुना है कोई भी, आता नहीं कभी मर कर..                                                - अभय सुशीला जगन्नाथ  कौन कहता है कि कोई भी आता नहीं कभी मरकर  दस्तक फिर ये किसकी है दिल में मेरे रह - रह कर  और नफ़्स बन दौड़ रहा है, रग-रग मेरे लहू बन कर                                                      - अभय सुशीला जगन्नाथ 

चल केमिस्ट्री कैन्टीन

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सुना है गुज़रे ज़माने कभी लौट कर आते नहीं  चल केमिस्ट्री कैन्टीन तुझे उससे मिला लाते हैं  मुस्कान लबों पे पहले फ़िर ख़यालात आते हैं  यूं रोज़ाना बचपन के जमाने हमें याद आते हैं                                                 - अभय सुशीला जगन्नाथ  

"वायु" बन अल्हड़ "युवा"

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बचपन से हमारे तुम्हारे,  कुछ याद जुडे हैं ऐसे, "वायु" बन अल्हड़ "युवा" , आसमानों उड़े हैं जैसे... कहीं इलाहाबादी "युवा" और संग आवारा "वायु"  Finding fellow, is “easy”, in an old snap... Though “easier”, Dreaming in nap... Rather “easiest”, in beats, if heartiest chap ! For whom... emotions overwhelm  My Friend Pandit ! You are "The One" of them...                                             - Abhay Sushila Jagannath 

हनुमान सा ज़रा दिल में सिया-राम निकाल ले

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बेमिसाल इश्क़ की भला कोई क्या मिसाल दे, हनुमान सा ज़रा दिल में सिया-राम निकाल ले...                                                           - अभय सुशीला जगन्नाथ 

पीपल तले वो पुराना मंदिर

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पीपल तले वो पुराना मंदिर, और तालाब किनारे वो स्कूल, यूँ ही पड़ जाते हैं, अब भी मेरे डगर... मैं और मेरी आवारगी ! जब भी कभी चले जाते हैं, नादान-अंजान फिर तेरे शहर... दिखता है वो बचपन, वो जवानी, वो अल्हड़ता भरी बेतुकी सी कारस्तानी, और नरगिस-ए-नाज़ के, वो दिलकश भंवर... चैती बयार लिए छठी मैया के पुराने हमसफ़र, डी०रे०का० इंटर कॉलेज और सेंट जॉन्स के रहगुज़र, के०वि०, डीेoएलoडब्ल्यूo की वो शाम-ओ-सहर, इक नज़र...                                                                - अभय सुशीला जगन्नाथ