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ग़ज़ब ताल्लुक़ है

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 मेरे घर आने जाने में माना ऐे दोस्त कि तखल्लुफ है  पर यादें बिन बुलाए चली आती हैं ग़ज़ब ताल्लुक़ है                                                         - अभय सुशीला जगन्नाथ दिन महीने साल बीत गए, याद रहा तो बस लम्हा   नरगिस-ए-नाज याद रही, और तबस्सुम-ए-पिन्हा                                               - अभय सुशीला जगन्नाथ

बिहार कोकिला इक नज़र

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पीपल तले वो पुराना मंदिर, और तालाब किनारे वो स्कूल, यूँ ही पड़ जाते हैं, अब भी मेरे डगर... मैं और मेरी आवारगी ! जब भी कभी चले जाते हैं, नादान-अन्जान फिर तेरे शहर... दिखता है वो बचपन, वो जवानी, वो अल्हड़ता भरी बेतुकी सी कारस्तानी, और नरगिस-ए-नाज़ के, वो दिलकश भंवर... सर्द कतिकी बयार लिए, स्कूली रास्तों के रहगुज़र, तलाब किनारे हैं बैठे मुन्तज़र, पाक़ अर्घ के उस शाम-ओ-सहर, देखने को उस आफ़ताब का असर, आज फिर इक नज़र, छठ के पुराने हमसफ़र,... उसी सफर में शारदा आज, खो गयी नजाने किस डगर, किस नगर... मैं और मेरी आवारगी, और बिहार कोकिला इक नज़र ! - अभय सुशीला जगन्नाथ पीपल तले वो पुराना मंदिर, और तालाब किनारे वो स्कूल, यूँ ही पड़ जाते हैं, अब भी मेरे डगर... मैं और मेरी आवारगी ! जब भी कभी चले जाते हैं, नादान-अन्जान फिर तेरे शहर... दिखता है वो बचपन, वो जवानी, वो अल्हड़ता भरी बेतुकी सी कारस्तानी, और नरगिस-ए-नाज़ के, वो दिलकश भंवर... सर्द कतिकी बयार लिए, स्कूली रास्तों के रहगुज़र, तलाब किनारे हैं बैठे मुन्तज़र, पाक़ अर्घ के उस शाम-ओ-सहर, देखने को उस आफ़ताब का असर, आ

बिहार कोकिला इक नज़र - पद्मश्री शारदा सिन्हा जी

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उजर बगुला बिना पिपरा ना सोहे कोयल बिना बगिया ना सोहे राजा पनिया के जहाज से पलटनिया बनके जइहऽ ले ले अइहऽ होऽ पिया सेनूरा बंगाल के। पटना से बैदा बुलाई द, नजरा गइली गुइयां बाबा दिहले टिकवा सेहुर हम तेजब बलमुआ कैसे तेजब ए छोटी ननदी हमार जिया डोले रे छोटी ननदी और इस कैसेट / एल्बम का टाइटल ट्रैक बताव चाँद केकरा से कहाँ मिले जालऽ और मेरा सदाबहार... हमनी के रहब जानी दूनू परानी अंगना में कींच-काँच दुअरा पर पानी खाल ऊँच गोर जाला चढ़ल बा जवानी 90 के दशक में महेन्दर मिसिर को पूर्व-भारत और पुरबिया लोगो के घर घर सुना जा रहा था, परन्तु किसी को पाता नहीं था की ये गीत किसने लिखे और साथ ही इन्ही काव्यों के स्वर मॉरीशस तक गूँज रहे थे, मतलब अपने पहले एल्बम से ही अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करता संगीत और काव्य कितना शानदार होगा यह बिना उस संगीत को सुने आप नहीं समझ सकते ! गानों के रचयिता थे महेन्दर मिसिर , जिनसे मेरा परिचय तो विस्तार से मेरे पत्रकार भाई स्वर्गीय गुड्डू राय ने कराया, क्योंकि वह भी हम दोनों भाइयों की तरह छपरा के ही थे , महेन्दर मिसिर का जन्म 16 मार्च 1886, मिसिरवलिया गांव , प्रखंड जलालपुर, छ

श्यामल अर्घ के गोधूलि पहर, पाक़ सुब्ह-ओ-अर्घ मुन्तज़र = छठ , छठी मइया

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आज फिर ख्यालों के रहगुज़र खुल रही वो अधखुली खड़की, जिनसे हटता था परदा दोपहर... श्यामल अर्घ के गोधूलि पहर फिर निकल रहा है माहताब, कभी चाँदनी सा चौथे पहर... और कभी बनकर आफताब, एक नूर-ए-सहर, मेरी नज़र... पाक़ सुब्ह-ओ-अर्घ मुन्तज़र                                    - अभय सुशीला जगन्नाथ

इश्क़ के "असफ़"

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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे 98 की सर्दियों का मौसम, और नए नए फ्लैट B-224, सेक्टर-20 फ्लैट में, सुबह 4 बजे वॉकमेन से होता छोटे कंप्यूटर स्पीकर में बजता, जगजीत सिंह की आवाज़ में मिर्ज़ा ग़ालिब का कैसेट ! हम लोगों को इस नए फ्लैट में शिफ्ट हुए बस एक दो दिन ही हुए थे और हम लोग का मतलब मैं और हमारे दो अज़ीज़ मित्र संग एक बड़े भाई तुल्य सत्य प्रकाश " सत्या गुरु " ! वो बाकी दो महान विभूतियाँ थी रजत सहगल और आसिफ अहमद ( Asif Ahmad )! एक बड़े सवादी, इलाहाबादी...दूसरे लखनऊ नवाबी ! और हम दो बनारसी ! बहुत कम लोग जानते हैं की सत्य प्रकाश श्रीवास्तव ( Satya Srivastava ) यानी सत्या गुरु को "गुरु" की पदवी और नाम आसिफ ने ही दिया था ! तो हम और आसिफ आगे वाले रूम पार्टनर, और पीछे वाले में रजत सहगल और सत्या गुरु ! आसिफ ने मुझसे जान रखा था कि मैं 3-4 बजे उठकर गाना सुनते हुए पढ़ने बैठ जाता हूँ, और उसने भी बता रखा था कि वो रात में 3-4 बजे तक पढता है , मतलब जब वो सोने जाता तब मैं उठता ! लेकिन उसको ये नहीं पता था , कि गाना मैं कौन सा बजाऊंगा ! और उससे भी बड़ी