छांव थे वो मेरे सिर पर
छांव थे वो मेरे सिर पर,
धूप कितनी भी आई, मैं सुरक्षित रहा...
हर कठिन राह में वो साथ थे,
चुपचाप मुस्कुराकर, सब कुछ सहा...
अब सूनापन है हर कोने में,
उनकी हँसी की गूंज नहीं आएगी...
पर यादों की इस बगिया में,
उनकी वही मुस्कान कहीं मुस्कायेगी...
श्रद्धांजलि बाबूजी
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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