ज़ुल्फ़ों की अता, निगाहों के पैमाने
ज़ुल्फ़ों को गिरा कर यूँ , ये किसने ये रात सा असर किया, उनके दरम्यान उठती आँखों से, ये जिसने ये सहर किया, उनकी दिलकश अदाओं ने, मुझ जैसे कई दीवानों पर, कहर हर पहर किया ! जाने क्यों लोग दीवानों सी, हुस्न-ओ-शबाब की बातें करते हैं, तेरे आगे तो माया भी, शर्मिंदा है, नाकाफी है, मैं और क्या मिसाल दूँ, तेरी तो ज़ुल्फ़ें ही काफी है, ऊपर से इस धरती पर, निगाहों से क़त्ल की माफ़ी है ! शराब है या मदिरा है , या तेरी निगाहों के पैमाने ! बेहोश हैं, मदहोश हैं, तेरी गलियों के सब दीवाने, उसपर घनेरी ज़ुल्फ़ों की अता, बयान कर रहे हैं, अनगिनत उन दीवानो के अफ़साने, जो उन ज़ुल्फ़ों ...