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Showing posts from September, 2020

ज़ुल्फ़ों की अता, निगाहों के पैमाने

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                                                                                                                            ज़ुल्फ़ों को गिरा कर यूँ , ये किसने ये रात सा असर किया, उनके दरम्यान उठती आँखों से, ये जिसने ये सहर किया, उनकी दिलकश अदाओं ने, मुझ जैसे कई दीवानों पर, कहर हर पहर किया ! जाने क्यों लोग दीवानों सी, हुस्न-ओ-शबाब की बातें करते हैं, तेरे आगे तो माया भी, शर्मिंदा है, नाकाफी है, मैं और क्या मिसाल दूँ, तेरी तो ज़ुल्फ़ें ही काफी है, ऊपर से इस धरती पर, निगाहों से क़त्ल की माफ़ी है !   शराब है या मदिरा है  , या तेरी निगाहों के पैमाने ! बेहोश हैं, मदहोश हैं, तेरी गलियों के सब दीवाने, उसपर घनेरी ज़ुल्फ़ों की अता, बयान कर रहे हैं, अनगिनत उन दीवानो के अफ़साने, जो उन ज़ुल्फ़ों के पेंचो में फंसकर, उन निगाहों की खुमारी में खो कर,  आवारा फिरते रहते थे, बेचारे दीवाने! मैं और मेरी आवारगी भी, अक्सर यूँ ही,  ख्वाबों में तुझे बिठाये अपने सिरहाने, घूम आते हैं उस गुज़रे जमाने ! जहाँ फिर देख कर तेरा हुस्न-ए-जमाल, खुद से पूछ बैठता हूँ वही सवाल, कि तू परी है, या अप्सरा है, या खुदाया खुद " खुदा "

लिखावट में अदावत

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तेरी भावनाओ को बयान करती थी लिखावट तेरी, हर अक्षर में झलकती थी लिखते हुए अदावत तेरी, आज Keyboard में वो बात कहाँ, वो कागज़ों में, में दिल उतार देना स्याही का सुर्ख हो जाना,  मैं और मेरी आवारगी, ढूढ़ रहे तेरी नाराज़गी, जिसमे प्यार था, ज़िद्द थी, और थी दीवानगी !               - अभय सुशीला जगन्नाथ