शर्म-ओ-हाया, हद-ए-शराफत
उनकी नज़रों से नज़रे क्या मिली, होने लगी फिर चुलबुली शरारत, अल्लहड़पन की उफ़्फ़ कहर-ए-अदाएं, ढाने लगी दिल-ए-नादान पर क़यामत , आंखें मेरी हटी नहीं, नज़रें उनकी झुकी नहीं, मैं और मेरी आवारगी करते रहे, एक दूजे से यूँ ही बगावत, और सुनयना संग नैना करते रहे, आँखों - आँखों में कुछ यूँ शिकायत, ये इज़हार था, या इनकार था, या प्यार था, या फिर तक़रार था, या हुस्न-ओ-इश्क़ की खूबसूरत अदावत, जूनून-ए-मोहब्बत में जिसने तोड़ डाली, सारी शर्म-ओ-हाया, सारी हद-ए-शराफत - अभय सुशीला जगन्नाथ