काली तरुण हिरनी !
काली तरुण हिरनी ! ठसक कर बैठी रहना तुम, उस इनाम में मिली गद्दी पर, और अपनी लंबी चपल टांगो से, राजनीतिक कुश्ती लड़ना, धरने पर बैठी महिला पहलवानों से... बलात्कार के चीत्कार से आवाज़ होती है ? कितना गम है, यही जो मानते हैं बेआवाज़ शारीरिक शोषण को सभ्यता, दुनिया के सबसे ख़तरनाक़ जिस्म खाऊ लोग हैं ! स्मृतिशेष कवि वीरेन डंगवाल ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनकी पी0टी0उषा पर लिखी, कालजयी कविता में कुछ फेर बदल कर, उसी हिरनी के लिए , उनकी कविता उन्ही की विषय वासना का शिकार हो जाएगी, जब वो हिरनी, बलात्कार के चीत्कार को असभ्यता बताएगी और मैंने भी नही सोचा था कि, मेरे अपने प्रिय खिलाड़ी , अपने पिताजी की पुण्यतिथि पर, इस तरह की श्रद्धान्जलि लिखूंगा, परंतु मुझे इसका भी पूर्ण विश्वास है, कि एक खिलाड़ी होते हुए, मेरे पिताजी, महिला खिलाड़ियों के साथ हुए शोषण पर लिखी मेरी कविता को ज़रूर सराहते, और यदि जीवित होते, तो अपनी खिलाड़ी बेटियों का उनके इस संघर्ष में साथ देने, जंतर मंतर भी ज़रूर जाते, क्योंकि उन्होंने एक खिलाड़ी की मुश्किलों को करीब से देखा था, और उनका कहना था कि ये जगजाहिर है कि खिल...