मैं और मेरी आवारगी, फिर अनायास मुस्कुरा उठे ! जब एक गुज़रा ज़माना याद आया, बाबू साहब ने पहला इश्क़ किया, फिर एकाएक दोस्ताना निभाया ! मोहतरमा के नाज़ुक होठों को, हमने लाल गुलाब की पंखुड़ी बताया, तो उन्होंने उन पंखुड़ियों को तोड़ , Love me, Love me not खेल से सताया ! उसने तिरछे नैनो से क़त्ल-ए-तीर चलाया तो बाबू साहब ने, उसे Angle of Refraction बताया, मैंने उसको Angle of Reflection समझाया ! उसने मोहब्बत में मेहबूब को बेवफा, और मैंने बावफ़ा बतलाया, तब बाबू साहब ने Method of Substitution, और बेदर्दी Method of Elimination लगाया ! हम उनको इश्क़-ए-Integration बताते रहे, बाबू साहब रस्क-ए-Differentiation समझाते रहे,! वो भी क्या दिन थे, क्या हसीन था ज़माना, एक ने किया पहला इश्क, एक ने निभाया दोस्ताना ! एक का है जन्मदिन, एक को है ये कहानी सुनाना ! बाबू साहब ! Miss you जान, Love you जान-ए-जाना, और तू मान या न मान, मैंने तो जिस दिन तुझे पहचाना, उस दिन से आजतक बस तुझे ही माना, और इस पहले आखिरी इश्क़ को तुझ संग है निभाना ! ...