मैं और मेरी आवारगी, और तेरी वो पार्कर
आधा पता, अधूरा खत और एक गुलाब,
लिख छोड़ा था मैनें जो, तेरे उस किताब,
इंतज़ार में हैं पूरा कर, तू भेजेगा जवाब...
जिस कलम से लिखे तूने, मेरे लिए ख्वाब
मैं और मेरी आवारगी, और तेरी वो पार्कर,
पूरा करने में लगे हैं रख के, पांव में रकाब...
मंज़िल-ए-मकसूद पहुंचेंगे जिस एक रोज़,
तमाम उम्र का उस ख़ुदा से भी करेंगे हिसाब
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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