पहला इश्क़ दोस्ताना !

 मैं और मेरी आवारगी,

फिर अनायास मुस्कुरा उठे ! 

जब एक गुज़रा ज़माना याद आया,

बाबू साहब ने पहला इश्क़ किया,

फिर एकाएक दोस्ताना निभाया !


मोहतरमा के नाज़ुक होठों को,

हमने लाल गुलाब की पंखुड़ी बताया,

तो उन्होंने उन पंखुड़ियों को तोड़ ,

Love me, Love me not खेल से सताया !


उसने तिरछे नैनो से क़त्ल-ए-तीर चलाया

तो बाबू साहब ने,

उसे Angle of Refraction बताया,

मैंने उसको Angle of Reflection समझाया !


उसने मोहब्बत में मेहबूब को बेवफा,

और मैंने बावफ़ा बतलाया,

तब बाबू साहब ने Method of Substitution,

और बेदर्दी Method of Elimination लगाया !


हम उनको इश्क़-ए-Integration बताते रहे, 

बाबू साहब रस्क-ए-Differentiation समझाते रहे,!


वो भी क्या दिन थे, 

क्या हसीन था ज़माना,

एक ने किया पहला इश्क,

एक ने निभाया दोस्ताना !


एक का है जन्मदिन,

एक को है ये कहानी सुनाना !


बाबू साहब !

Miss you जान,

Love you जान-ए-जाना,

और तू मान या न मान, 

मैंने तो जिस दिन तुझे पहचाना,

उस दिन से आजतक बस तुझे ही माना, 

और इस पहले आखिरी इश्क़ को तुझ संग है निभाना !


                                                     - अभय सुशीला जगन्नाथ



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