राधा-कृष्ण ! प्रेम के सात वचन !




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कृष्ण :
रुक जाओ राधा , हमारे मध्य में सात पग की दूरी होना आवश्यक है, क्या इन सात पगों को पार करना, तुम्हें उचित लगता है !

राधा :
तुमने मुझे दो प्रेमियों के सात जन्मों  की कहानी सुनायी , ये बताने के लिए , कि प्रेम अनंत होता है

शरीर का शरीर से नहीं , संबंध तो मन का मन से होता है , जब सात जन्म कोई मायने नहीं रखते, तो ये सात पग ! ये क्यों महत्व रखते हैं ? कैसे महत्व रखते है ?

जब प्रेम के ये सात वचन ,
जो सात नहीं !
अनंत तक साथ रहते हैं !

प्रेम का प्रथम वचन
दो प्रेमी एक दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे , एक दूसरे की सहायता करेंगे, तो मैं पहला पग तो ले ही सकती हूँ न कृष्ण !

प्रेम का दूसरा वचन
जब प्रेमी खो जाये, तो अपना प्रेम पुनः पाने के लिए, समस्त संसार ही क्यों न खोजना  पड़े, खोजो ! अपने प्रेम के लिए , हर संभव प्रयास करो , और प्रेम संबंध को परिशुद्ध रूप से  अनंत तक निभाओ  !

हमारे उसी संबंध को मैं निभा रही हूँ कृष्ण , मैं दूसरा पग ले रही हूँ !

प्रेम का तीसरा वचन
अपने प्रेमी के मन से प्रेम करो, तन से नहीं !
और हमारे इस सात पग की दूरी का वचन , तन से है मन से नहीं ! और मैं तो तुमसे मन से प्रेम करती हूँ न कृष्ण ! तो मैं ये तीसरा पग क्यों नहीं ले सकती ?

प्रेम का चौथा वचन
यदि प्रेम में प्रेमी अनुचित मार्ग पर चला जाये, तो बल से ही सही, प्रेमी को रोकना प्रथम धर्म है ,
और जहाँ अनंत प्रेम हो , वहाँ दूरी ! दूरी रखना तो अनुचित होगा न !

प्रेम का पाँचवा वचन
दो प्रेमियों को सदैव एक दूसरे के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान दिलाना चाहिए , और अब जब मैं अपना वास्तविक स्वरूप जान चुकी हूँ ,
कि कृष्ण दिव्य है , और उसने मेरे भीतर कि दिव्यता को जागृत किया है , तो मैं पाँचवा पग आवश्य  बढ़ाउंगी !

प्रेम का छठा वचन
यदि दो प्रेमी किसी भी कारण वश , एक दूसरे से दूर हो जाएँ , तो उनके प्रेम में लेष मात्रा भी कमी नहीं आनी चाहिए, हर क्षण एक दूसरे के दुःख को हरने कि यातना करनी चाहिए , इसी  कारण मैं छठा पग ले पा रही हूँ कृष्ण !

क्योंकि सात पग कि दूरी से भी इस प्रेम में लेष मात्रा भी अंतर नहीं पड़ा , अपितु और बढ़ा है ,
और इसी दूरी से तुम्हें दुःख पहुंचा है , और मैं इस छठे पग से इस दूरी को दूर कर रही हूँ !

प्रेम का सातवाँ वचन
समय आने पर, प्रेमी को अपने प्रेम के लिए कुछ भी करना होगा , वही तो मैं कर रही हूँ कृष्ण , सदा सदा के लिए ये दूरी मिटा रही हूँ !

जानते हो कृष्ण ! कि प्रेम अंतिम सीख क्या है ?

कृष्ण :
नहीं नहीं ! समस्त ब्रह्माण्ड ये जानने के लिए आतुर है राधा ! कहो !

राधा :
इन सात पगों की दूरी जैसे नियमों से ये संसार, प्रेम का आकलन करता है कृष्ण !

संसार समझता है की प्रेम उनके नियमों और बंधनों के अनुसार ही होगा , पर वास्तव में प्रेम संसार को अपने नियमों से चलाता है ,

जिस से मैं प्रेम करती हूँ, उस से ये सात पग की दूरी , जो संसार ने बनाई है ,  मैं स्वीकार नहीं करती !

इस सात जन्म का बंधन , विवाह का बंधन नहीं,  प्रेम का बंधन है , संसार ने उसे अनुचित समझ  कर विवाह से बांध दिया है , और आज मैं राधा , उन सब बंधनों से मुक्त होकर, उससे मिलने आयी हूँ , जिस से प्रेम करने के अतिरिक्त, मुझे कुछ और करना आता ही नहीं !

मैने तुमसे कहा था, कि मैं तुमसे प्रेम करती थी, ये भी कहा था कि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ, किन्तु आज ये कह रही हूँ कि मैं तुमसे अनंत तक प्रेम करुँगी !

आज तक तुमने कहा था कृष्ण ! आज मैं कह रही हूँ !
न मैं हूँ , न तुम हो , केवल हम हैं कृष्ण !
केवल हम !

अनंत से चला आ रहा ये प्रेम , और अनंत तक चलेगा

आज तक, प्रेम के इस झूले को तुम झूला रहे थे, आज से मैं भी इसे चलाऊंगी

कृष्ण :
जब दो लोग एक होकर, समानता से प्रयास करेंगे तभी तो इस प्रेम के झूले को वास्तविक बल मिलेगा

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राधा राधा राधा राधा कृष्ण कृष्ण कृष्ण

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