अंगना में कीन्च कान्च, दुअरा पर पानी, खाल-ऊँच गोड़ जाला, चढ़ल बा जवानी,,, जब भी मैं यह लाइन, अपने इस भाई से मिलकर, उसको छेड़ते हुए गाता, तो वह व्यंग में अगली लाइन सुनाता था कहत महेन्दर मिसिर सुनो दिलजानी, केकरा प् छोड़ के जालS टुटही पलानी,,, वह व्यंग इसलिए सुनाता था, क्यूंकि हम #DLW , #बनारस से, सिर्फ और सिर्फ गर्मी की छुट्टी में ही , अपने पुश्तैनी घर, रिविलगंज, छपरा (सारण) बिहार जाते थे, और बाद में तो जब दिल्ली आ गए तो यदा कदा ही गांव आना जाना होता था , तो आप उसके व्यंग को अब समझ गए होंगे परन्तु इस गाने से और भाई से मेरा नाता , कुछ अलग इसलिए था, क्यूंकि इस से मिलने के बाद, लालू-नितीश के अलावा तीन लोगों पर ज़रूर बात होती थी पहले "सम्पूर्ण क्रांति" के #जननायक जय प्रकाश नारायण, दूसरे " भोजपुरी के #शेक्सपियर ", भिखारी ठाकुर और तीसरे ऊपर वाली दोनों लाइन के रचयिता, " #पूरबिया के जनक" , महेन्दर मिसिर, तीनो की तीनो विभूतिया , छपरा (सारण) के महान रत्न ! आज बात भाई के साथ साथ महेन्दर मिसिर की, जिनका जन्म 16 मार्च 1886, मिसिरवलिया गांव , प्रखंड जलालपुर, छपरा (सारण...