माँ, बाबूजी !

 माँ, बाबूजी !

आज सोच रहा हूँ,

लिखू तो लिखू मैं क्या,

फिर मुझे ख़याल आया,

ख़याल में भी ख़याल रखना,

जिसको हरदम-हरपल है भाया,,,,

ऐसा फिकरमंद और ख़याली,

है बस माँ-बाप का साया !

मर्म धुरी,

ममता के समकक्ष,

मार्मिक आव्यूह,

मुझे आई अब रानाई है,

तुझसे हुई जब शनासाई है,

ईश्वर यदि धरती पर हैं,

तो वो बाबूजी और माई है !

पुण्य तिथि पर बाबूजी के,

माँ ! दिल से आवाज़ ये आई है,

हर जनम दोनों के गोद में खेलू, 

बस आपको मेरी ये रुबाई है !


                        - अभय सुशीला जगन्नाथ 





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