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Showing posts from January, 2025

अमन-ओ-खुशहाल वतन की चाहत

 ना तो है अब धन की चाहत, और ना ही नश्वर तन की चाहत, अब तो दिल को देता है राहत, अमन-ओ-खुशहाल वतन की चाहत... हाँ उसी भारतवर्ष की चाहत, जहां अपने खून से धरा को, सींचते हुए, दिए वीर शहादत... अब उन देशभक्तों के चरणों में, है बस शीश नमन की चाहत, जो सरहद की रक्षा को रखते हैं, बदन पर तिरंगे कफन की चाहत ...

हर लम्हा, हर पल

ज़िन्दगी में न आने वाला कल है, और ना ही गुज़रा हुआ कल है, ये ज़िन्दगी तो ऐ मेरे दोस्त  हर पल दो पल है, ज़िन्दगी को उसने ही जिया, जो जीता हर लम्हा, हर पल है

बाबुल का आंगन

जीवन की देखो अजब पहेली, छूटा पहले बाबुल का आंगन, छूटी फिर गलियां जहाँ मैं खेली, टूटा वो गुड्डे गुड़ियों का घरौंदा, और छूट गयी वो सखी-सहेली _________________________

घर-आँगन महकना

माली बन मैं घर, बाग़ सा सजाऊंगा, रजनीगंधा बन तुम, घर-आँगन महकना

छुपाओगे यूं दबाकर

छुपाओगे यूं दबाकर, प्यार कब तलक, दिल और दिमाग मे, यूं ही चलेगा, ये तकरार कब तलक, तोड़ दो बंदिशें, और बयान कर सब, आंखों पर से अपनी ,  उठा कर पलक

तमन्नाओं की महफ़िल है

 तमन्नाओं की महफ़िल है, सपनो का यह शहर है, वरना इस मशरूफियत मे, कभी कभी यूं लगता है, ज़िंदगी एक मीठा ज़हर है, जैसे एक लंबे सफर की, न शब है कोई, न सहर है __________________________________ बेवफाई का जब शबब पूछा दुनिया ने, हम क्या कहते और क्या बतलाते, बस लिख दिया... अल्फ़ाजों को पढ़ने वाले, अहसासों को कहां समझ पाते ___________________________________ तेरी आंखों में मैंने,  हसीन ख्वाब है देखा, चली आ हथेली में लिए, मेरी वो भग्यशाली रेखा ___________________________________ तेरी आंखों में मैंने,  हसीन ख्वाब है देखा, चली आ हथेली में लिए, मेरी वो खुशकिस्मत रेखा

फिर जब तेरी महफ़िल सजी

फिर जब तेरी महफ़िल सजी, तब समझा दिलको क्या भाता था, कल तलक यहां वीरानी थी, एक अजीब सा सन्नाटा था इन अल्फाजों को दिलों मे सज़ा लो, क्योंकि इस महफ़िल में हमारे बाद, फिर से वही गुमसुम तन्हाई होगी, जैसा पहले वीरान सन्नाटा था महफ़िल में कई मोहतरमा, और कई जनाब आये, पर महफ़िल में चढ़ा शबाब, जब आया वो लाल गुलाब ... क्या नज़ाकत, न पूछो जनाब, आज भी वही क़ातिल अदा, खुद से ही शरमाता और इठलाता, वो बेनज़ीर हुस्न-ए-शबाब