रोज़ हैं मुक़द्दर आजमाते
शायद कहीं मिल जाये यूँ ही, रोज़ हैं मुक़द्दर आजमाते,
जिस राह में घर है तेरा, उस गली हैं अक्सर आते जाते,
मैं और मेरी आवारगी.. और अबतलक पड़े वही रास्ते...
एक राम भक्त, बजरंगबली के दर, दोनों के दर्शन वास्ते
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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