Pandit

सजी नहीं बरात तो क्या, आई न मिलान की रात तो क्या,
ब्याह किया तेरी यादों से, गठबंधन तेरे वादों से,
बिन फेरे हम तेरे, बिन फेरे हम तेर... 

एक दर्द भरी आवाज़ में यह गाना, कई दिनों बाद,
पहली बार किशोर दा के आवाज़ से अलग,
एक सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल मित्र की आवाज़ में सुना...

एक दूसरे सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल मित्र को अमेरिका की फ्लाइट पकड़ाने जाते समय !

सन 2000 की ठंडी में कोहरों के बीच मारुती ओमिनी में,
यकीन मानिये वो तेज़ाब के " सो गया ये जहाँ " से भी रूहानी लग रहा था !

गाने की एक एक इमोशनल लाइन हमारे मित्र गाते जा रहे थे, और बाकी मैं और दूसरे दो और मित्र,
रात के 12 बजे दिल्ली की सड़को पर उस गाने में हवाई यात्रा की उड़ान-मंजिल; एयरपोर्ट की जगह , सब के सब अपनी अपनी यादों की उड़ान भर रहे थे,
और सन्नाटे में चीरती हुयी उनकी दर्द भरी आवाज़ गाने की एक एक लाइन के साथ सफर को भी इमोशनल बनाते जा रही थी !

तीन तीन राउंड वह गाना पंडित जी ने हम लोगों बार बार अनुरोध करने पर सुनाया !

गाना सुनाने वाले सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल मित्र एक इलाहाबादी थे, उनसे मिलवाने वाले मित्र हमारे क्लासमेट थे और जिनको हम छोड़ने जा रहे थे वह खांटी बनारसी थे, तीनो आज भी हैं, परन्तु  अब न कोई बनारस रहता है न इलाहबाद ! 

क्योकि सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल्स तो सिपाही है सिपाही !

जो हर पल बदलती इस सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में नए नए सॉफ्टवेयर लैंग्वेज और कोड्स के साथ क्लाइंट के नित नए आईडिया और बग्स से एक फौजी की तरह कभी इस देश तो कभी उस देश जा उनके आईडिया को उनके कस्टमर और जन साधारण तक पहुंचा रहे हैं और उस बीच में आने वाले विविध बग्स और विसंगतियों से दिन रात 24x7 लड़ते रहते हैं !

कुछ हमारे जैसे भी हैं,
जो अपने ही आईडिया के पीछे,
अपनी आवारगी की आवारा धुन में मगन रहते हैं !

अपनी आवाज़ से मंत्रमुग्ध करने वाले शुद्ध इलाहाबादी आशीष तिवारी और रोहित मिश्रा के साथ,
खांटी बनारसी सुयश अवस्थी को अमेरिका की फ्लाइट पकड़वाने की यादों में खोये   

मैं और मेरी आवारगी


यह पृष्ठभूमि न तो मेरी कहानी की है, न अपनी आवाज़ से मंत्रमुग्ध करने वाले आशीष तिवारी की और न ही खांटी बनारसी सुयश अवस्थी की, " एह दुनो मित्रन के लिए बनारसी फक्कड़पन और बाबा विश्वनाथ लगत हौ कउनो और दिन मूड बनईहन " आज ता B'Day Boy पंडित पर मूड चटकल हौ  


पंडित रोहित हमारे साथ साथ अन्य मेरिट क्वॉलिफिएर्स में से एक थे जिन्होंने  UPMCAT-1998; सम्पूर्ण उत्तरप्रदेश के MCA और MBA / PGDBM के पहले आल इंडिया एंट्रेंस, जिसके कारण आज का UPTU बना है, उसको टॉप रैंक्स के साथ क्वलीफी किया और उस समय के बेस्ट इंस्टिट्यूट एपीजे इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में एडमिशन लिया !


पंडित का ज़िक्र हो और रजत सहगल; उनके रूम पार्टनर का ज़िक्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है, परन्तु अभी सिर्फ मैं इतना ही कहूंगा, रजत सहगल एलियन थे, किसी दूसरे गृह के निवासी, इसलिए उनके बारे में कभी किसी और दिन परन्तु चलते चलते यहाँ एलियन शब्द का और विस्तारीकरण कर दूँ और बता दूँ कि उस समय के एपीजे के हमारे पूरे २१ स्टूडेंट्स के ९८ बैच को हर एक रीडर तथा प्रोफेसर के साथ साथ  डीन और डायरेक्टर भी एलियन बैच ही कहते थे 


एलियन से आप लोगन ओहके बहुत अच्छा या एक्स्ट्राऑर्डिनरी मत समझिहा लोग , बनारसी में ओहके बस चरितार्थ कर देई ता समझा " उद्दंड -परम लंठ " बैच ! 


यकीन न हो ता किसी भी जूनियर से या सीनियर से आप पूछ सकते है उस बैच के महान विभूतियों के बारे में 


देखिये आप इस बात से समझ गए होंगे कि ज़िक्र हम पंडित का कर रहे थे, और बताने दूसरे सभी एलियंस के बारे में लगे, तो सब कितने मजेदार होंगे , सबके बारे में एक से एक बातें हैं, मूड चटकने पर एक एक कर बताऊंगा , आज HP रोहित कि बात 


पंडित मल्टी  टैलेंटेड इलाहाबद के बॉयज स्कूल के मेधावी छात्र और उसके बाद इलाहबाद यूनिवर्सिटी से बीएससी कर ६ महीना काशी विद्यापीठ में बिता, एपीजे आ गए और फिर दिल में बस गए


पंडित से हमारी दोस्ती गीत संगीत से शुरू हुयी, क्योंकि हमारे फ्लैट पर ही एक मात्र डेस्कटॉप कंप्यूटर था , जिसके कहने को मालिक हमारे अज़ीज़ मित्र मनीष मिश्रा उर्फ़ डब्बा थे, परन्तु उसे उसको सार्वजनिक रूप से बारी बारी प्रोग्रामिंग / पढ़ाई के लिए कम परन्तु एंटरटेनमेंट के लिए ज्यादा किया जाता था !


मनीष मिश्रा उर्फ़ "डब्बा" का ज़िक्र आया तो देखिये आंखे नाम हो गई, पता नहीं क्यों भगवान् उनको अपने पास इतनी जल्दी बुला लिए , उनके भी बारे में बाद में विस्तार से लिखेंगे क्योंको उस से मेरा एक ऐस रिश्ता बना कि १९९५ से २००० तक का लगभग दिन रात का साथ और फिर CDAC पुणे जाते समय BHU के ही क्लासमेट ऋभु भास्कर और मित्र श्रीवास्तव के साथ ट्रैन की बिदाई की ही यादें हैं, अब ज्यादा मनीष के बारे में लिखूंगा तो और इमोशनल हो जाऊंगा, अभी सिर्फ HP और हाँ ऋभु भाई कि भी बहुत यादें हैं St Johns DLW से लेकर BHU और  हैदराबाद तक की एक से एक मजेदार यादें, अभी टॉपिक पर चलते हैं   


पंडित बोलने और लिखने में इतने प्रगाढ़ व माहिर हैं कि आप अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू किसी भी एक भाषा में कुछ भी लिखने या बोलने को दे दीजिये , वह तीनो भाषा में इतना कमांड रखते हैं कि हर शब्द का हिंदी और इंग्लिश के साथ साथ उर्दू भी उतनी ही आसानी से बोल देंगे या लिख देंगे 


2000 के शुरुआत में जॉब के लिए टेलीफोनिक इंटरव्यू का दौर होता था, पंडित ने न जाने कितने जूनियर्स, जो UP Board से पढ़ने के कारण  बोलचाल की अंग्रेजी में तंग होते थे, तो उनकी जगह टेलीफोनिक इंटरव्यू दे कर नौकरियां लगाई , परन्तु पंडित खुद कभी भी एक जगह नहीं टिके, मनमौजी मस्त अल्लहड़ और फक्कड़पन के दीवाने पंडित अगर सीरियसली किसी एक जगह टिक कर सिविल सर्विसेस का एग्जाम देते तो शर्तिया रैंक के साथ UPSC  निकालते 


करियर लांचर के अध्यापक, करियर लांचर के फ्रैंचाइज़ी ओनर, IIT JEE के मैथ्स एंड फिजिक्स टीचर और जबरदस्त स्टूडेंट काउंसलर का किरदार हो या आज जम्बूरी के मेंटर की पोजीशन हो, हर रूप में पंडित की मेंटरिंग का कोई मुक़ाबला नहीं ट्रू एलियन


पंडित के टैलेंट की मज़ेदार कहानी सुनाता हूँ, पंडित का ज़िक्र हो और बंटू सिंह का ज़िक्र न हो, यह तो नाइंसाफी होगी, दोनों जैसे दिया और बाती, दोनों की दोस्ती का आप इस से अंदाजा लगा सकते हैं कि सेमेस्टर एग्जाम देने जाने लिए बंटू कि स्कूटर पर उनके साथ जाने के लिए कौन आदमी पीछे बैठेगा , इस कम्पीटीशन में बंटू के बचपन के मित्र आसिफ भाई के ओवरकॉन्फिडेन्स को उस दिन गहरी ठेस पहुंची जब बंटू ने कहाँ " आसिफ मैं तुमको नहीं बल्कि पंडित को ले कर कॉलेज जाऊंगा "


जिस आसिफ ने बंटू का एडमिशन एपीजे में कराया , उसकी ये दसा " गज़ब की बेइज़्ज़ती है यार "


तो उसी सेमेस्टर एग्जाम का समय था, आप सभी जानते होंगे कि PG कोर्सेज के सेमस्टर एग्ज़ॅम्स के पेपर्स में ३-४ दिन का गैप होता है, और ज्यादातर स्टूडेंट्स उन्ही ३-४ दिनों पढ़ाई कर एग्जाम देते हैं, तो उसी तर्ज़ पर बंटू अपना बोरिया बिस्तर ले हमारे फ्लैट पर डेरा डाल चुके थे क्यूंकि कॉमर्स बैकग्राउंड होने के कारण उनको थोड़ा ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी, और ऊपर से बंटू भाई जाट भी थे, सो सोने पर सुहागा !


कंप्यूटर नेटवर्किंग एंड डाटा कम्युनिकेशन का टफ/कठिन पेपर था, आसिफ सत्य गुरु रजत सहगल, मैं और बंटू 4 दिन से पढ़ाई में लगे हुए थे , और पंडित यदा कदा जब फ्लैट पर दिख जाते तो बंटू सिंह , पंडित को बोलता " साले पंडित ! पढ़ लो नहीं बैक लग जायेगा, पंडित बोलता , जाट अपना काम करो ! " परन्तु शाम को दोनों एक साथ नीचे बैठ प्रेम कि पींगे ज़रूर बढ़ाते, बंटू समय से वापस आकर पढ़ाई करने लग जाते  पर पंडित वहीँ लगे रहते !


बंटू कभी गुस्से में और कभी मज़ाक में पंडित को बोलता , " साले पंडित ! इस चक्कर में न रहना मैं, तुमको नक़ल करा दूंगा , पढ़ लो नहीं बैक लग जायेगा " और उसके बाद बंटू हमारे साथ पढ़ने के लिए बैठ जाते !


मैं पंडित को पढ़ाई करने के लिए एक बार भी नहीं बोल रहा था इसलिए कभी कभी बंटू मेरे ऊपर भी गुस्सा जाये , कि समझाओ यार इसको, पर पंडित अपनी ही प्रेम धुन में मगन थे !


सोमवार को कंप्यूटर नेटवर्क्स एंड डाटा कम्युनिकेशन का पेपर था , संडे कि रात के नौ बजे पंडित अपनी सिग्गरेट और पानी कि बोतल लेकर मेरे और बंटू के बगल वाली मनीष मिश्रा कि ऐतिहासिक कंप्यूटर टेबल पर बैठे और बोले 

" अभय भाई ज़रा सिलेबस दिखाना " और इतना सुनते ही बंटू डिस्टर्ब होकर बीएड से नीचे गिर गया , 

बाकि के फ्लैट के सदस्य हँसते हँसते लोट पोट हो रहे थे , कि पंडित अभी तुमको यही नहीं पता कि सिलेबस क्या है, तो किताब तो दूर कि बात है, बंटू उठकर हँसते हुए बोलै, साले पंडित कल एग्जाम हॉल में एक भी रत्ती मदद नहीं करूँगा, मैंने ४ दिन जमकर पढ़ाई की है , अब पंडित तुम अपना देख लो

पंडित ने बंटू को फिर समझाया , " हमका ज्ञान ना देवो जाट , अपना देखो नहीं किस्मत तुम्हारी गलगोटिया खाने लगेगी " 


अब गलगोटिया और गुलाटियां वाली कहानी किसी और दिन बताऊंगा, अभी एग्जाम हाल में चलते है, रात को पंडित गुस्सा कर सिलेबस लेकर दूसरे कमरे में चले गये और फिर मेरे सो जाने के बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं 


सुबह एग्जाम हाल में पेपर मिलने के के बाद सब सर झुका लिखने में लग गये, तभी एक फुसफुसाती आवाज़ मेरी कानो में पड़ी , पंडित-पंडित ! 

बंटू सिंह पंडित को धीमी फुसफुसाती आवाज़ दे रहे थे, और पंडित अपनी धुन में मगन थे 

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