इत्तिहाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़

इत्तिहाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का,
तौबा ये शबाब,
हम  जवान होते गए ,
वो बेइन्तहा खूबसूरत,
हमारी खुशनुमा ज़िन्दगी का,
शायद यही लब्बोलुआब ...
एक महताब तो दूजा आफताब

                        अभय सुशीला जगन्नाथ

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तुझ पर लिखू,
या उस पर लिखू,
बड़ी कश्मकश है ,
किस पर लिखू,
अच्छा लिखा तो,
तू इतराएगा,
खूबसूरत लिखा तो,
हुस्न गुरुर खायेगा,
तुम दोनों में जाने क्या नशा है,
लिखते ही सुरूर सा छाये,
तुझसे बस इतनी ही इल्तज़ा है,
ए खुदा तू देख,
इस मुक्कमल जोड़ी को,
कोई भी नज़र न  लगाए ...

                       - अभय सुशीला जगन्नाथ

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आप का ये साथ,
जैसे चाँद और रात,
शुब्हानल्लाह !
ये मुक्कमल दीद,
जैसे चाँद रात वाली ईद 

                      अभय सुशीला जगन्नाथ

आप का ये साथ,
जैसे चाँद और रात,
चाँद रात को ईद कहते हैं ,
और शायद इसको ,
मुक्कमल दीद कहते हैं ...

                         अभय सुशीला जगन्नाथ

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