शायद तुम जैसी ही वो परी थी

परियों की वो कहानियां ,
जो दादी-नानी कभी सुनाती थी,
वो भी क्या फ़साना था ,
शायद तुम जैसी ही वो परी थी ,
जब बचपन का ज़माना था...

कागज़ की वो नाव थी,
बारिश का मौसम सुहाना था,
नीम की डाली से कभी,
घंटो झूला झुलाना था,
कच्चे आम और खट्टी इमली खाकर,
क्या खूब वो जीभ चटकाना था,
शायद तुम जैसी ही वो परी थी,
जब बचपन का ज़माना था...

बालू और मिटटी का वो,
घरौंदा तोड़ना बनाना था,
सुन्दर गुड़िया की वो शादी,
किसी लकड़ी के गुड्डे से कराना था,
फूल पत्ते की वो सब्ज़िया,
बनाना और खिलाना था,
गुड़िया का श्रृंगार कर,
क्या खूब वो इठलाना था,
और गुड्डे गुड़िया की लड़ाई पर,
जिसको रूठना मनाना था,
शायद तुम जैसी ही वो परी थी,
जब बचपन का ज़माना था ...

वो दौड़ कर कहना आ छु ले,
फिर चुपके से छिप जाना था,
कोयल और बिल्ली की आवाज़ दे,
साथी को बरगलाना था,
छुपन छुपाई का वो भी,
क्या हसीनअफसाना था,
शायद तुम जैसी ही वो परी थी,
जिसको खेल खेल में ढूंढ कर लाना था ...

                                         अभय सुशीला जगन्नाथ

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