ये तेरी आँखें है ...

सुबह की ओस सी,
आँखों की ये चमक,
सूरज के तेज़ की ये झलक,
मुस्कुराती खिलखिलाती आँखें हैं,
या बारिश के बूंदो की छल छल छलक,
आँखों की झील में नाव हैं या पलक ,
ये पलक जो झुके,
तो सुरमई शाम का साथ,
बंद हो गए जो,
तो घुप काली तनहा रात,
इन बंद आँखें में भी तौबा ये शबाब,
शायद बुनती रहती हैं,
तन्हाई में भी ये कोई हसीन ख्वाब,
ख्वाब से उठे तो सुबह की अज़ान,
पाकीज़ा से पाक ये तेरी आंखे हैं,
या फिर खुदाया विहान,
या मेरा ही कोई गुमान,
जिस से आज तलक,
मैं और मेरी आवारगी अन्जान ...
ये तेरी आँखें हैं ...

                       अभय सुशीला जगन्नाथ

ढूंढते  रह  जाएंगे  अब  तो  ता  उम्र ,
चरणों  से  कह  दो  ज़मीन  पर  आ  जाएं

                                    अभय सुशीला जगन्नाथ

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अब तो कुछ भी न बचा,
जो हुआ ना इन आँखों से बयां,
दो आँखें के इशारे से, बयां दोनो जहां

                                       अभय सुशीला जगन्नाथ

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