जाने फिर, कब मिले फुर्सत

इस रिश्ते को निभा जाना
जब मिले फुर्सत,
कभी पास आ जाना,
जब मिले फुर्सत ...

सुना है सब कुछ देता है खुदा,
मुझे तो बस तुम ही मिल जाना,
जब मिले फुर्सत ...

दोस्ती, प्यार, यकीन,
ये सब तो तुमसे ही सीखा ,
बिना इनके जीना सिखा जाना,
जब मिले फुर्सत ...

उसी प्यार को प्रेरणा बना,
दोस्त के दिखाए मंज़िलों पर,
उसी यकीन के साथ,
मैं और मेरी आवारगी चले जा रहे हैं,
दो और कदम साथ चलने आ जाना,
जब मिले फुर्सत ...

माना बहुत मशरूफियत है, 
पर सांस तो लेते ही होगे तुम,
साँसों में कैसे बसाया है यादों को,
ये हुनर भी देख जाना, 
जब मिले फुर्सत ...

एक रोज़ ऐसा वक़्त आएगा,
जब तुम्हे मिलेगी बेइंतहा फुर्सत,
तब मेरी तन्हाई का आलम सुन जाना,
फिर मेरी कहानी सुन,
तुम कुछ गुमसुम हो जाना ,
रोना मत, बस अंतिम बार,
अपनी उसी उन्मुक्त मुस्कराहट से,
" अपने सपनो में हमें सुला जाना "
जाने फिर, कब मिले फुर्सत 

                    अभय सुशीला जगन्नाथ

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