आवारा आदत !!!

सरफिरा सा मैं आवारा,
फिरता रहा दर बदर,
फिर मेरी आवारगी को,
दिखा नूरानी चेहरा तुम्हारा,
अल्लाह-ईश्वर तो देखा नहीं,
करने लगा सज़दाए यारा,
देखो ये मेरे बंधे हाथ,
जुबां पर रब से भी ज्यादा,
आने लगा है नाम तुम्हारा,
देख ऐसा "गुनाह",
मैं और मेरी आवारगी ने,
"काफिर" रख दिया नाम हमारा,
शायद उसे ये पता नहीं,
तू तो रूहानी इल्हाम है,
प्रेरणा है, उत्प्रेरक है,
रोशन करता रहता है जो,
जीवन संघर्ष में हमारा,
हरकदम यही सज़दा तुम्हारा,
इसीलिए तो तू आज तलक है,
उस अल्लाह-ईश्वर से भी प्यारा,
अब चुप चाप किये जाएंगे,
रब से और भी ज्यादा,
तेरा सज़दा,
तेरी इबादत,
कोई फल दे की न दे,
हमारी सलत ...
हमारी इबादत,
क्या करें मैं और मेरी आवारगी?
इसकी यही,
आवारा आदत !!!

                 अभय सुशीला जगन्नाथ

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