बेनाम


तेरा शहर है,
तेरी ही गालियाँ,
आवारा भये रस्ते,
तूने मुँह जो लिया मोड़,
फिर कौन मेरी आवारगी को,
लिए जा रहा है, बादस्तूर !
तेरे बताये मंज़िल की ओर,
शायद आज भी बंधी है,
तेरे मन की आँखों से,
मेरे ख्वाबों की हर एक डोर,
फितूरी और जुनूनी,
उन्ही ख्वाबों की ओर,
तेरा तुझको सौंप के,
क्या लागत है मोर,
मेरा मुझमें कुछ नाही,
जो है वो सब तोर...

मैं और मेरी आवारगी !
तेरे बताये , तेरे दिखाए,
मंज़िल-ए-सफर में ऐसे डूबे,
कि बेनाम कर गए मुझे,
तेरा नाम, मेरे नाम से जोड़...

मेरे नाम को तो अब लोग,
कुछ ऐसे करते हैं याद,
कुछ तेरे नाम से पहले,
कुछ तेरे नाम के बाद...

तेरी आवारगी में, मैं आवारा,
और नाम, बेनाम हो गया !

                              अभय सुशीला जगन्नाथ


मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोह |
तेरा तुझको सौपता, क्या लागे है मोह ||

                                                      - कबीर






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