तेरे शहर में सहर

याद-ए-माज़ी की आवारगी में,
आवारा रोज़ एक बार,
पहुंचता तेरे शहर है,
बड़ी कशमकश-ए-दहर है,
क्या अब भी यहीं वो दर्द-ए-जिगर है ?
जिसके लिए एक ख़यालात,
वो चुनता हर एक सहर है,
फिर उनको अल्फ़ाज़ों में,
बुनता रहता एक एक पहर है,
कोरे कागज़ों पर उतरते,
उन जज़्बातों का अंदाज़-ए-बयां,
क्या उसी दर्द-ए-जिगर का असर है ?
या फिर,
अभी बाकी ज़िन्दगी की सहर है,
जिसके लिए आवारा तेरी आवारगी में,
रोज़ एक बार पहुंचता तेरे शहर हैं ...

                                       अभय सुशीला जगन्नाथ

याद-ए-माज़ी - memory of past
कशमकश-ए-दहर - dilemma of world
सहर - Morning





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