अवध बिहारी भये उषा के राजा
मंगल भवन अमंगल हारी,
भये भगदतपुरम् में अवध बिहारी,
मंदार पर्वत से प्रभु अवतारी,
लम्बे बांके जैसे साक्षात् त्रिपुरारि !
सुनयना, सुशीला, सुन्दर और प्यारी,
भोजपुर की उषा एक सुकुमारी,
प्रेम किरण डाल मोह लिहिन राजा को,
अवध बिहारी भये प्रेम पुजारी !
उषा प्रेम प्रकाश जब अवध में आयो,
बिहारी संग उषा सबही को भायो,
उषा किरण बिखरी चहू ओरा,
कहे बिहारी मन मोह लिहिन् मोरा,
उषा भयी जो खुशहाल उमंगा,
सूर्य दैदीप्यमान आयो उदयन संगा,
बाल रूप पुनः पायो अवध बिहारी,
उषा के मुख आयो मुस्कान एक प्यारी !
अवध में फिर उत्सव है जारी,
प्रेम प्रकाश से एक टक निहारी,
अवध बिहारी को उषा सुकुमारी,
एक दूजे के मन को अति भायो,
पुष्प वर्षा से उषा-अवध कुञ्ज नहायो,
चारों दिशाओं बजे ढोल मृदंगा,
नन्ही परी आयी अवध के अंगना,
कल कल खिल खिल हंसी जैसे गंगा,
तेज ऐसो जैसे उषा का कंगना,
हिमालय पर्वत की शिखा सुनयना,
उषा अवध के राधा का क्या कहना,
परी-अप्सरा सब गए लजाई,
अइसन रूप न देख्यो गोंसाई,
मुस्कान लिए सरस्वती है आई,
सबके मन को अत्यंत ही भाई !
सियाराम सुफल किये सब काजा,
अवध बिहारी भये उषा के राजा !
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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