जन्नत-ए-मन्नत


मन्नत-ए-जन्नत की ख़्वाहिश में,
सुना है दोस्त तू मेरे लिए,
खुदा के सामने सज़दे करता है,
तेरी इन्ही दुआओं का तो असर है,
जो खुदाया गम भी,
अब तलक बे-असर है,
और क्यों न हो भला,
ऐसे भी कहाँ कोई,
मन्नत मांगता है !
सज़दे में खुद,
मेरे लिए एक खुदा,
अपने आप से ही खोयी,
जन्नत मांगता है !

                                        - अभय सुशीला जगन्नाथ

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