बोलती है खामोश तस्वीर भी तेरी !

मैं और मेरी आवारगी,
शिद्दत से जब भी,
देखते हैं तस्वीर तेरी,
खुद को देख आँखों में मेरी ,
बोलती है खामोश तस्वीर भी तेरी !

मेरी आवारगी के आवारापन में,
बेइंतहा खूबसूरत आंखें तेरी,
यादों के खुशनुमा रंग घोलती है,
उन यादों में गुमसुम,
जब मैं और मेरी आवारगी,
तेरी ख़ामोशी से कुछ बोलती है,
तब मेरी तन्हाई,
तेरी ख़ामोशी तोलती है,
फिर तेरी खामोश तस्वीर,
खुद-ब-खुद ही मेरे लिए,
अपने हसीन लब खोलती है,
और उन लबों के अल्फ़ाज़ों को,
जज़्बातों में पिरोने को,
मेरी बेताब कलम डोलती है,
कलम उठा तेरे अल्फ़ाज़ों को,
पिरोता हूँ जब उन ज़ज़्बातों में,
तब जाने क्यों ये दुनिया,
उसे कविता और शायरी बोलती है !

                              - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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