मैं तुझपे मरता हूँ

दोस्त कहते है,
सिर्फ बोलने के लिए,
मैं तुझपे मरता हूँ,
उन्हें क्या पता,
गर मारा तो तू मुझे,
सीने में न दफना ले,
इसलिए मरने से डरता हूँ,
तेरी और एक बात,
कि मौत तो सबको है आती,
पर दोस्ती हर किसी को नहीं आती,
हाँ वही दोस्ती !
जो मुस्कान चेहरे पर है लाती,
और खुसबू साँसों में बस जाती,
जो तू बचपन से है बताती,
अक्सर याद करता हूँ,
दोस्त ! अब तु ही बता,
मैं क्या गलत करता हूँ,
जो कहता हूँ,
कि मैं तुझपे मरता हूँ !

                           - अभय सुशीला जगन्नाथ 

Comments

Popular posts from this blog

राधा-कृष्ण ! प्रेम के सात वचन !

परी-सुरसुन्दरी, अप्सरा-देवांगना

बिन फेरे हम तेरे