मोहब्बत
मोहब्बत जिन्हें हो गई हो किसी से
मोहब्बत का अंजाम कब सोचते हैं
ये ऐसा सुहाना सफ़र है कि जिसमें
हजारो है नाकाम कब सोचते हैं
चिरागे वफ़ा अपनी हाथों में लेकर
मोहब्बत की राहों में जो चल पड़े हैं
बयाबान में होगी कि सहरा में होगी
कहाँ होगी अब शाम कब सोचते हैं
मोहब्बत के मारों को अब और ए दिल
सताएंगी क्या सख्तियाँ जिन्दगी की
जिन्हें थक के नींद आ गई पत्थरों पर
वो दुनियां का आराम कब सोचते हैं
ये इन्सान क्या है खुदा के भी आगे
कभी प्यार दुनियां में झुकता नहीं है
प्यार झुकता नहीं है
मोहब्बत ही जिनका खुदा बन चुकी हो
किसी और का नाम कब सोचते हैं
मोहब्बत जिन्हें हो गई हो किसी से
मोहब्बत का अंजाम कब सोचते हैं
मोहब्बत का अंजाम कब सोचते हैं
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