तू है...
सुबह आँख खुली,
देखा बगल में तू है,
नींद में खूबसूरती,
जैसे परी हूबहू है,
टहलते बाग़ में निकला,
फूल भी किसी को,
घेरे हुए खड़े थे,
देखा कलियों सी तू है,
सर्द हवाएँ भी रोज़,
खुशबू बिखेरती बहती हैं,
फ़िज़ाओं में ये महक,
तेरे साँसों की हर सू है,
पूजा भी तू , स्नान भी तू,
मंदिर भी तू,अज़ान भी तू,
आकाश में सूरज ही नहीं,
आकाश गंगा का विस्तार ही तू है,
ढलती शाम की मदहोशी,
सूरज को आगोश में ले डूबी,
अपनी काली ज़ुल्फ़ों से रात किये,
चाँद सा चेहरा लिए ये तू है,
काजल से तेरे रंग चुरा,
आँखों में जाम लिए,
अपने संग सबको मस्त किये,
देख काली तनहा रात भी तू है,
हर वक़्त उस तनहा रात में
उस वक़्त के हर लम्हात में,
मैं और मेरी आवारगी,
करते हैं रात भर गुफ्तगू जो,
वो अनगिनत अनंत बात भी तो तू है ...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
देखा बगल में तू है,
नींद में खूबसूरती,
जैसे परी हूबहू है,
टहलते बाग़ में निकला,
फूल भी किसी को,
घेरे हुए खड़े थे,
देखा कलियों सी तू है,
सर्द हवाएँ भी रोज़,
खुशबू बिखेरती बहती हैं,
फ़िज़ाओं में ये महक,
तेरे साँसों की हर सू है,
पूजा भी तू , स्नान भी तू,
मंदिर भी तू,अज़ान भी तू,
आकाश में सूरज ही नहीं,
आकाश गंगा का विस्तार ही तू है,
ढलती शाम की मदहोशी,
सूरज को आगोश में ले डूबी,
अपनी काली ज़ुल्फ़ों से रात किये,
चाँद सा चेहरा लिए ये तू है,
काजल से तेरे रंग चुरा,
आँखों में जाम लिए,
अपने संग सबको मस्त किये,
देख काली तनहा रात भी तू है,
हर वक़्त उस तनहा रात में
उस वक़्त के हर लम्हात में,
मैं और मेरी आवारगी,
करते हैं रात भर गुफ्तगू जो,
वो अनगिनत अनंत बात भी तो तू है ...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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