मैं तो उषा हूँ , हर रोज़ मिलूंगी

तू मत उदास होना,
बार बार यूँ न रोना,
मैं सदा तेरे पास हूँ,
जिस प्यारी हथेली से,
सब कुछ मैंने तुझे सिखाया,
देख तेरे वही दोनों हाथ हूँ...

उन सुन्दर हाथों में,
मेरा तू अहसास कर,
जब तू मुझे याद करेगी,
और मेरी बातें खास कर,
उतर जाउंगी तेरे दिल में,
साँसों में तेरी साँस भर,
छु कर अपने चेहरे को,
उसी पांचों उँगलियों से,
माँ की मार्मिक ममता का,
बेटी तू आभास कर,
मैं तो तुझमे बचपन से हूँ,
रगों में तू महसूस कर,
आत्मिक तू अहसास कर...

मैं तो उषा हूँ , हर रोज़ मिलूंगी,
सूरज के प्रकाश के संग,
पुष्प बन , हर रोज़ खिलूँगी,
लिए इंद्रधनुषी हर एक रंग,
कभी जो आएगा गम दरवाजे,
मैं आउंगी फिर लड़ने एक जंग,
देख लुंगी अपने आशीर्वाद से,
चिंताओं और ग़मों के हर रंग ढंग,
आंच न आने दूंगी तुझ पे,
कर दूंगी उनकी हर मनसा भंग,
और फिर देखना हर ख़ुशी में तेरी,
खिलखिलाती  हंसी मेरी मस्त मलंग ...

जब तू हँसेगी मेरी हंसी,
मैं आउंगी उस मुस्कान में,
बस गयी हूँ सदा के लिए,
मैं तो तेरे जान में,
तू क्यों फिर उदास है,
मैं तो तेरी हर मान में,
मेरा तू विस्तृत रूप है,
बसी मैं तेरे प्राण में,
जिस दिन तुमको जनम दिया,
उस दिन से तेरे जान में...

जब तू हर सुबह उठेगी,
उषा बन मैं तुझे मिलूंगी,
अपने हाथों की हथेली को,
चेहरे पर बस तुम रख लेना,
प्यार से मैं तुझे छु लुंगी,
स्नान ध्यान में तेरे मैं,
भगवान संग मंदिर में,
देखना तुम मैं भी रहूंगी,
सारी खुशियां देना बिटिया को,
ईश्वर से मैं खुद कहूँगी ...

तू मेरी बहादुर बेटी,
मेरा ही तू रूप है,
जीवन देती मेरी बगिया को,
उषा किरण की धूप है,
तुझमे मैं ज़िंदा रहूंगी,
मेरा ही तो तू स्वरुप है
मेरी सुनयना की सुन्दर आँखें,
उसमे मेरा ही तो रूप है,
एक में माँ और एक में पिता,
स्वयं इश्वर-अल्लाह प्रारूप हैं ...

                       - अभय सुशीला जगन्नाथ









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