दुबारा ज़बरदस्त इश्क़ !

"" तेरे तलब में बेहद तलबगार हैं हम,
कैसे कहें, तेरी ख़ातिर बेक़रार हैं हम ""
                                                  - बेनाम
इतने करीब होकर भी,
क्यों बेक़रार है,
अब रूह के मिलन का,
शायद इंतज़ार है

सदियों की प्यासी आँखें,
तेरे जिस्म पर उतर गयी,
जनमों से भटकती हुयी,
पाक रूह से तेरे गुज़र गयी

लाजवाब तो तू है ,
जिसका कोई जवाब नहीं,
कहाँ से आई है तू,
यकीन दिला तू ख़्वाब नहीं

दिल की तन्हाई,
तेरी जुदाई,
मेरी शायरी,
ख़ुदा की रुबाई !

                   - अभय सुशीला जगन्नाथ
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मुझे तो दोनों बार ही ज़बरदस्त हुआ 😄😄😄

ताज्जुब की बात तो ये है की एक ही इंसान से दो बार ज़बरदस्त इश्क़ हुआ 😍

तू है ही इतनी प्यारी की बार बार इश्क़ करने को दिल करता है 😉


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