पुलकित है मन !

पूर्ण हुआ संग उनके,
पल दिन महीने मिलाकर,
फिर और एक  वर्ष,
पुलकित है मन तेरा,
लिए उल्लाह और हर्ष,
कभी थे तुम दोनों अनजाने,
जाने क्यों लगने लगे,
कई जनमो के जाने पहचाने,
मिला जो एक बार दोनों का हाथ,
फिर न छूटा कभी हाथों से हाथ,
यूँ ही डाले बाँहों में बाँह,
बनी रहे एक दूजे की चाह,
कभी गम से,
कभी खुशियों से,
होता रहा दोनों का सामना,
पर सजता रहा मन ही मन में,
सुन्दर घर का एक हसीन सपना,
कभी जो आई कोई भी कमी,
एक दूजे के हाथों से पोंछी,
दूसरे के आँखों की नमी और गमी,
ले लो मेरे दिल की दुआए भी आज,
खुशियों से रहे तेरा घर संसार आबाद,
चलते चलते शादी की सालगिरह की,
आप दोनों को बहुत बहुत मुबारकबाद

                                        - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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