बदगुमान दिल

दोहराई गयी ये दास्तान,
लिया होठों ने जब कभी,
गलती से भी तेरा नाम,
दिल बुरा मान बैठा नादान,
धड़कन को बढ़ा कर उसने,
दिखाया अपना रंग-ए-गुमान,
फिर दौड़ाया लहू को उसने,
तपते हुए रगों के दरम्यान,
जिस्म और रूह सिहर उठे,
जैसे हो कोई जंग-ए-मैदान,
मैं और मेरी आवारगी सोचते रहे,
दिल भी निकला कैसा बदगुमान
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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