बिछड़ी हुई रूहों का ये मेल सुहाना है
सिमटी हुई ये घड़ियाँ, फिर से न बिखर जायेँ
इस रात में जी लें हम, इस रात में मर जायेँ ।
अब सुबह न आ पाये, आओ ये दुआ माँगें
इस रात के हर पल से, रातें ही उभर जायेँ ।
दुनिया की निगाहें अब हम तक न पहुँच पायेँ
तारों में बसें चलकर धरती पे उतर जायेँ ।
हालात के तीरों से छलनी हैं बदन अपने
पास आओ के सीनों के कुछ ज़ख़्म तो भर जायेँ ।
आगे भी अन्धेरा है, पीछे भी अन्धेरा है
अपनी हैं वो ही साँसें, जो साथ गुज़र जायेँ ।
बिछड़ी हुई रूहों का ये मेल सुहाना है
इस मेल का कुछ अहसास जिस्मों पे भी कर जायेँ ।
तरसे हुये जज्बों अब और न तरसाओ
तुम शाने पे सर रख दो, हम बाँहों में भर जायेँ ।
- साहिर लुधियानवी
बचपन सामने आ जाता है
Very touching यार
और मैं जीता हूँ,
हर रोज़ तुझे
और तेरी यादें
मैं और मेरी आवारगी !
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