मशरूफ, तआरुफ़

मैं और मेरी आवारगी,
तेरी दीवानगी में मशरूफ,
और मेरी आवारगी, अपनी आवारगी में मशगूल,
सिर्फ सांझ सवेरे होती है तआरुफ़ 

                             - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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मैं और मेरी आवारगी ,
हर पल तेरी दीवानगी में मसगूल,
और मेरी दीवानगी तेरी आवारगी में मशरूफ,
फिर भी जाने क्यों सिर्फ सांझ सावेरी होती है तआरुफ़ 

                                                              - अभय सुशीला जगन्नाथ 




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