आज कुछ एकदम नया करें !
नववर्ष के पहले दिन पर ही,
धड़क धड़क धड़कन कहती है,
चल न ऐ आवारा दिल,
आज कुछ एकदम नया करें !
आधी रात को बदलते वर्ष-वक़्त में,
नए सपने सजाने सँवारने को,
कुछ लम्हात की मोहलत और बढ़े,
चाँद तारों के पार,उस आकाश परे,
परियों की नगरी से तुझे उतारे,
और उगते सूरज की प्रकाशमयी आभा से,
सुनयना तेरे नैनो में रंग भरें,
सुबह सुबह ओस की बूंदो से,
दूधिया सीप मोतियों सा सुन्दर,
हरे घास पर तेरा नाम गढ़ें,
फिर खुले आसमान में तेरा,
बादलों से खूबसूरत अक्स बनाएं,
और चमकते सूरज की लाली से,
तेरे चेहरे में दिव्य लालिमा भरें,
बाग़ के फूलों की ताज़ा तरीन,
खुशबूदार और सदाबहार,
मुस्कान तेरे होठों पर मढ़ें,
काली घटाओं से काजल चुरा,
पहले नयन तेरे सुरमई करे,
और फिर उन्ही घटाओं से,
तेरे घने ज़ुल्फो में श्यामल रंग भरें,
क्यों न फिर कुछ ऐसा करें,
कि इंद्रधुनष के बिबिध-बिरंगे,
बिंदास मनरंगी सतरंगी रंग,
तेरी उन्मुक्त हँसी पर चढ़े,
बाद उसके क्यूं ना कुछ शरारत करें,
कि स्वछन्द मनमौजी हवाएं,
और रिमझिम बारिश की फुहारें,
तेरे भोले शर्मीलेपन में कुछ मस्ती गढ़ें,
फिर मस्तानी सुहानी शाम की मस्ती,
मदहोश-मदमस्त खुमार लिए,
तेरे युवा अल्लहड़पन पर चढ़े,
घुप रात की शांत ख़ामोशी में,
दिल-धड़कन की सरगोशियां बढ़े,
फिर आँखों आँखों की गुफ्तगू में,
खामोशियाँ ही अपने शब्द गढ़े,
अब तू ही बता, कुछ राह दिखा,
मैं और मेरी आवारगी !
इस आवारा दिल का क्या करें ?
नववर्ष के पहले दिन पर ही,
जिसकी बेचैन धड़कन,
धड़क धड़क कहती है,
चल न ए आवारा दिल,
आज कुछ एकदम नया करें !
एक दम नए वर्ष की भर दम शुभकामनाएं,
झमाझम खुशियों में आप हर दम मुस्कुराएं !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
धड़क धड़क धड़कन कहती है,
चल न ऐ आवारा दिल,
आज कुछ एकदम नया करें !
आधी रात को बदलते वर्ष-वक़्त में,
नए सपने सजाने सँवारने को,
कुछ लम्हात की मोहलत और बढ़े,
चाँद तारों के पार,उस आकाश परे,
परियों की नगरी से तुझे उतारे,
और उगते सूरज की प्रकाशमयी आभा से,
सुनयना तेरे नैनो में रंग भरें,
सुबह सुबह ओस की बूंदो से,
दूधिया सीप मोतियों सा सुन्दर,
हरे घास पर तेरा नाम गढ़ें,
फिर खुले आसमान में तेरा,
बादलों से खूबसूरत अक्स बनाएं,
और चमकते सूरज की लाली से,
तेरे चेहरे में दिव्य लालिमा भरें,
बाग़ के फूलों की ताज़ा तरीन,
खुशबूदार और सदाबहार,
मुस्कान तेरे होठों पर मढ़ें,
काली घटाओं से काजल चुरा,
पहले नयन तेरे सुरमई करे,
और फिर उन्ही घटाओं से,
तेरे घने ज़ुल्फो में श्यामल रंग भरें,
क्यों न फिर कुछ ऐसा करें,
कि इंद्रधुनष के बिबिध-बिरंगे,
बिंदास मनरंगी सतरंगी रंग,
तेरी उन्मुक्त हँसी पर चढ़े,
बाद उसके क्यूं ना कुछ शरारत करें,
कि स्वछन्द मनमौजी हवाएं,
और रिमझिम बारिश की फुहारें,
तेरे भोले शर्मीलेपन में कुछ मस्ती गढ़ें,
फिर मस्तानी सुहानी शाम की मस्ती,
मदहोश-मदमस्त खुमार लिए,
तेरे युवा अल्लहड़पन पर चढ़े,
घुप रात की शांत ख़ामोशी में,
दिल-धड़कन की सरगोशियां बढ़े,
फिर आँखों आँखों की गुफ्तगू में,
खामोशियाँ ही अपने शब्द गढ़े,
अब तू ही बता, कुछ राह दिखा,
मैं और मेरी आवारगी !
इस आवारा दिल का क्या करें ?
नववर्ष के पहले दिन पर ही,
जिसकी बेचैन धड़कन,
धड़क धड़क कहती है,
चल न ए आवारा दिल,
आज कुछ एकदम नया करें !
एक दम नए वर्ष की भर दम शुभकामनाएं,
झमाझम खुशियों में आप हर दम मुस्कुराएं !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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