निशा

निशा की कहानी में, 

पर्वत शिखा से झांकती,

उस रात की रवानी में,

चांदनी किसको पसंद नहीं ,

पर चाँद भी खिलता है,

और चांदनी से जा मिलता है,

सिर्फ निशा की मेहरबानी में,

वरना दिन में तो सब घुप,

चमकते सूरज की नाफरमानी में ...


                          - अभय सुशीला जगन्नाथ 

दिल के अरमान यूँ ही रह गए,

न राह, न मंज़िल, ग़ुम सब दिशा,

इश्क़-ए-चांदनी में कुछ यूँ नहला गयी,

सांवली-सलोनी, सुन्दर-शांत निशा !

                     -  - अभय सुशीला जगन्नाथ

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उम्र है कि रोज़ाना घटती ही जा रही है...  

हरकतों ने भी क्या खूब उधम मचा रखा है 


                           - अभय सुशीला जगन्नाथ 



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