वो पहली नज़र, मुलाक़ात वो पहली !

वो पहली नज़र, 
मुलाक़ात वो पहली,
सुनयना की वो आँखें,
कुछ पैनी तीर सी यूँ चली,
झकझोर दिल की तरंगो को,
प्रेम की मचा गयी घनघोर खलबली,
दीवानगी को आतुर हो चला नादान दिल ,
छोड़ संयम और संजीदगी ! अच्छी भली ! 

पहले प्रेम की उस दिन शायद, 
पहली पहली हवा चली,
नवयौवन की खुशबू बिखेरती,
खुशनुमा रंग लिए तू कुछ ऐसी चली,
जैसे फूलों से भरे बाग़ की,
सबसे खूबसूरत और नायाब, कच्ची कली !

मैं और मेरी आवारगी, 
फिर दिन तो गुजारे,
देखते तेरे सुन्दर नैनो की,
अल्लहड़ शोखियाँ कुछ मनचली,
और वह रात भी उन यादों में,
जागते जागते पहली बार थी ढली,
शायद पहले प्यार की पहली यादें,
शमा सी मेरे सिरहाने थी जली !

मैं और मेरी आवारगी,
दोनों ! पहली बार थे विस्मित,
जाने कैसे, सब बात थी चली !
उस दिन शायद तू नहीं, 
बल्कि तेरी रूह थी चली,
अपनी बिछड़ी रूह से मिलने,
पहली पहली बार उस प्रेम गली !
जैसे कान्हा के कहने पर,
राधा वृन्दावन में पहली बार चली,
अनंत प्रीत की प्रीत निभाने ,
प्रथम प्रेम की उस प्रथम प्रेम गली !
 
                    - अभय सुशीला जगन्नाथ 




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