अपनी मोहब्बत कैसी रही
मैं और मेरी आवारगी,
सोचते हैं कभी कभी,
अपनी मोहब्बत कैसी रही,
फिर खयाल आया अभी अभी,
एक थी इकलौती ज़िन्दगी,
जो मौत तक सांस संग चली,
सफ़र-ए-मोहब्बत में आवारा,
मेरी आवारगी कुछ यूं ढली ...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
मैं और मेरी आवारगी,
सोचते हैं कभी कभी,
अपनी मोहब्बत कैसी रही,
फिर खयाल आया अभी अभी,
एक थी इकलौती ज़िन्दगी,
जो मौत तक सांस संग चली,
सफ़र-ए-मोहब्बत में आवारा,
मेरी आवारगी कुछ यूं ढली ...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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