ख़यालात-ए-सफर से कैद-ए-रिहाई

ख़यालात-ए-सफर से इस ,
दिल-ए-नादान को बचा कर,
याद-ए-रहगुज़र से गुज़रने की,
तमाम कोशिशे नाकाम रही...
अपने ख़यालों की गिरफ्त से,
उसकी बेइंतहा-ए-मोहब्बत ने,
कभी कैद-ए-रिहाई ही न दी...
हम दिल को बचाते रहे,
यादों से जी को चुराते रहे,
वो सांसो में गुज़रता रहा,
धड़कन बन धड़कता रहा...

                       - अभय सुशीला जगन्नाथ 


ख़यालों की रहगुज़र से,
जरा बच कर गुज़रना,
कहीं वो हसीन हमनशीने,
और उनकी सुनहरी यादें,
तुझे ख़यालों की गिरफ्त से,
कैद-ए-रिहाई ही न दे 

                           - अभय सुशीला जगन्नाथ

ख़यालों की रहगुज़र से, 
जरा बच कर गुज़रना,
कहीं हमनशीनों की हसीन यादें,
तुझे ख़यालों की गिरफ्त से,
कभी कैद-ए-रिहाई ही न दे

                       - अभय सुशीला जगन्नाथ







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