दोस्त की हिचकियाँ
दोस्त कभी भी,
शरारत नही छोड़ते है,
जब देखो हमे,
छेड़ने की चाहत रखते हैं,
इन्तेहा तो देखो मित्रों के इस
खुरापाती आदत की,
कि जब हम
स्वादिष्ट भोजन करते हैं,
वो खुदा से,
सज़दा-ए-फरियाद कर,,
बीच-बीच मे हिचकियाँ भरते हैं,
दोस्ती निभाने में,
हम भी कम थोड़े ना हैं,
हर एक निवाले के संग,
हम भी इंतज़ार करते हैं,
पता तो चले भला वो यूँ ,
कब कब हमे याद करते हैं
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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