तू मिले न मिले !

तू मिले न मिले, 
मंज़िल-ए-सफर में, 
तेरी हौसला अफजाई से,
बंद रास्तों में भी हमको, 
मन के ऊंचे उड़ान मिले !
 
फिर से जड़ों को मिटटी मिली,
फिर से पौधे सफर पर चले,

जब निकले हरे पत्ते उन शाखाओं पे,
तब बागों में तेरी खुशबू से फूल खिले !

फिरते रहे दर बदर,
जानने को,
तेरे नूर का राज़-ए-असर !
आकर तुझ पर,
मेरी आवारगी हुयी बे-असर !
ए जान-ए-जाना, जान-ए-जिगर !
तू ही तो चला रहा है निज़ाम-ए-हस्ती...
बदस्तूर हर सहर, हर पहर !

                              - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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आज ...!
अभी ....!
और इसी वक़्त.... !
मंज़िल-ए-सफर का हौसला तो कर,
बंद रास्तों में भी तुमको, 
मन के ऊंचे उड़ान मिलेंगे ! 

फिर से जड़ों को मिटटी मिलेगी,
फिर से पौधे सफर पर चलेंगे,

जब निकलेंगे हरे पत्ते उन शाखाओं पे,
तब बागों में तिरंगे फूल खिलेंगे !

फिरते रहे दर बदर,
जानने को,
तेरे नूर का राज़-ए-असर !

आकर तुझ पर,
मेरी आवारगी हुयी बे-असर !

ए जान-ए-हिन्दोस्तान !
तू ही तो चला रहा है निज़ाम-ए-हस्ती...
बदस्तूर... हर सहर, हर पहर !

                              - अभय सुशीला जगन्नाथ


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