तू कहीं और मैं भी कहीं
मैं और मेरी आवारगी,
सोचते हैं कभी कभी,
वो भी क्या दिन थे हसीन,
जब दिन रात तू कहती रही...
"तू है तो मैं भी हूँ,
तू नहीं तो मैं भी नहीं"
...और देख तू आज यही,
तन्हाई के आलम में तन्हा,
तू कहीं और मैं भी कहीं !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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