भक्क कटे !
तेरी खुशनुमा यादें ऐ दोस्त,
आज भी किश्तों में आती है,
तेरी दोस्ती का मूल धन,
दिल मे जो बचा रक्खा है ...
खिचड़ी में देख आज फिर,
छतो पर पतंग लिए बच्चों ने,
एक दूसरे से पेंच लड़ा रक्खा है,
और भक्क कटे की गूंज से,
मैंने फिर से तेरी शरारतों की,
नई किश्त का मज़ा चक्खा है ...
भक्क कटे थे कभी अपने भी पतंग,
तुझसे एक पेंच लड़ाने के संग,
मैं और मेरी आवारगी,
उन्ही यादों के मांझे में उलझे,
छोटी छोटी किश्तों में मलंग ...
आज फिर से लपेट-ढील रहे हैं,
वही फक्कड़ी बनारसी परेते,
और उनसे उड़ते रंग बिरंगे पतंग ...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
आज फिर मन की पतंग, बचपन में गोते लगा रही है,
दिल की लटाई से शायद, तुमने वो यादें ढील रक्खी हैं
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आज लटाई और मांझे देख, फिर सब्र के बांध टूटते हैं,
चलो दोस्त एक बार फिर, दौड़-दौड़ कटी पतंग लूटते हैं
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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