कटी पतंग
आज फिर मन की पतंग,
बचपन में गोते लगा रही है,
दिल की लटाई से शायद,
तुमने वो यादें ढील रक्खी हैं
आज लटाई और मांझे देख,
फिर सब्र के बांध टूटते हैं,
चलो दोस्त एक बार फिर,
दौड़-दौड़ कटी पतंग लूटते हैं
- अभय सुशीला जगन्नाथ
आज फिर मन की पतंग,
बचपन में गोते लगा रही है,
दिल की लटाई से शायद,
तुमने वो यादें ढील रक्खी हैं
आज लटाई और मांझे देख,
फिर सब्र के बांध टूटते हैं,
चलो दोस्त एक बार फिर,
दौड़-दौड़ कटी पतंग लूटते हैं
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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