ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !

 केंद्रीय विद्यालय, सेंट्रल स्कूल या छोटे में K०V०

रग रग में बसा,
एक एक पल, एक एक लम्हा,
मेरे लिए चाहे, बी०एच०यू० वाला K०V० हो, या डी० एल० डब्ल्यू० वाला,
हर जगह की यादें अमूल्य हैं, अमिट हैं !
आप में से भी कई लोग भारत के कोने कोने में फैले अन्य केंद्रीय विद्यालय में कहीं ना कहीं ज़रूर पढ़ाई पढ़े होंगे, या आस पास के मोहल्ले, शहर में देखे होंगे जो आपके मित्र-सहेली या अपने हम-उम्र या छोटे बड़े बालक-बालिका, जिनको आप स्कूल जाते देखे होंगे, और अगर ऐसा है तो आपकी भी कुछ यादें जरूर K०V० से जुडी होंगी I
और हम K०V० वालों के साथ साथ आपको भी याद होगा, सुबह सुबह की वो प्रार्थना ! वो मॉर्निंग असेंबली !
ॐ असतो मा सदगमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
प्रार्थना की ये लाइनें और सुबह-सुबह के मॉर्निंग असेंबली वाले हर क्रियाकलापों की मेरे तो ज़ेहन में अमिट छाप सी है,
और इस श्लोक का अर्थ भी लगभग सभी को पता ही होगा, खासकर केंद्रीय विद्यालय वालो को !
हे ईश्वर !
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चल।
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चल।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चल !
आप भी हंस रहे होंगे , क्या पुराने प्रार्थना के बकर में लगे हैं,
परन्तु जब मैं आपसे उसी प्रार्थना के अंतिम वाले संस्कृत श्लोकों के बारे में पूछूंगा या उनका सिर्फ हिंदी या अंग्रेजी में अर्थ ही पूछ दूँ, कि छोड़िये श्लोक को, सिर्फ अर्थ ही बता दीजिये, तब ?
क्या ? कौन सा ? अरे भाई याद नहीं आ रहा ? याद तो है ! बस जबान पर ही है ! निकल नहीं रहा !
हाँ !हाँ ! तो क्या हुआ ? याद कैसे आएगा , सालों बीत गया ,,,, कहाँ याद रहता है सब ?
यही मन में सोच भी रहे होंगे , और बुदबुदा भी रहे होंगे !
तो चलिए मैं बताता हूँ ,
ॐ सह नौ अवतु |
सह नौ भुनक्तु।
वीर्यं सह करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !
अब याद आया न, चलिए कोई नहीं , जब श्लोक ही नहीं याद, तो इसका अर्थ तो दूर दूर तक, उम्मीद के अनुसार, कहाँ याद होगा।
तब अब इससे पहले की आपमें से कोई Google करे मैं इसका अर्थ भी बता देता हूँ !
नहीं नहीं , मैं ज्ञान देने नहीं आया , मुझे भी इन श्लोकों का अर्थ नहीं पता था, मुझे गलत मत समझिये !
और इससे पहले कि आप Offended महसूस करें, एक महत्वपूर्ण बात बता दूँ !
कुछ नहीं पता होना, एकदम सामन्य है; Normal बात है, क्योंकि सबको सबकुछ नहीं आता, इसलिए मुझे भी नहीं पता था, यकीन मानिये, केंद्रीय विद्यालय में जब पढ़ते थे तब भी नहीं, और उसके बाद भी नहीं !
तो हम सब एक ही नाव, "अनजान और अनभिज्ञता " वाले, नाव के खेवैया हैं,
अपनी रोज़ की दिनचर्या और जीविकोपार्जन में व्यस्त नैया, बस अलग अलग खेवे जा रहे हैं !
हाँ बस एक अंतर है, केंद्रीय विद्यालय से लेकर कॉलेज तक इन श्लोकों का अर्थ मुझे भी नहीं पता था,
परन्तु फिर माता Dr Kanak Dwivedi जी , का सांनिंध्य मिला , जिन्होंने BHU में लेक्चरर का पद त्याग, संस्कृत वेद विद्यालय का सञ्चालन वाराणसी और प्रयागराज (इलाहबाद) में करने के साथ साथ समाज सेविका का निस्वार्थ कार्य करने का मार्ग चुना !
इन महान व्यक्तित्व डॉ कनक द्विवेदी जी का सांनिंध्य मिलने से संस्कृत के बारे में कुछ ज्यादा सीखा तब इन श्लोकों का अर्थ इनके माध्यम से पता चला, तबसे इन श्लोक का अर्थ जानता हूँ ! यही कोई 2004-2005 का समय था, जगह , नॉएडा, मेरा दूसरा जन्मस्थान और मेरी कर्म भूमि !
अब श्लोक की पृष्ठ-भूमि और उसके इर्द गिर्द की भूमिका खत्म, तो अब श्लोक पर आते हैं और माता डॉ कनक द्विवेदी जी द्वारा दिए गए अर्थ को बताता हूँ !
ॐ सह नौ अवतु |
ओम ! वह हम दोनों (हम लोगों) की एक साथ रक्षा करें !
Om ! May he protect us both together (all together) !
सह नौ भुनक्तु।
वह हम दोनों (हम लोगों) का साथ-साथ पोषण करें !
May he nourish us both together (all together) !
वीर्यं सह करवावहै।
हम दोनों (हम लोग) ऊर्जा-शक्ति संग, मिलकर वीरतापूर्ण काम करें !
Let us perform heroic deeds together (all together) with vigor-energy !
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।
हम दोनों (हम लोगों) की बुद्धि तेज व् विद्या-शिक्षा, उज्ज्वल हो, हम एक दुसरे से ईर्ष्या-द्वेष न करें !
May our intellect be sharpened, let there be no animosity-hate amongst us (all of us).
आजकल घटती अनेक घटनाओं और तेजी से बदलते हुए परिवेश में,
मैं और मेरी आवारगी,
अपने बचपन कि प्रार्थना के ये अंतिम वाले श्लोक अक्सर याद करते हैं, और अभी के माहौल में तो यह ज़ेहन में ही रहता है !
और हाँ वो अंतिम श्लोकों की अंतिम तीन शांति वाली लाइन भी, ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !
जानते हैं तीन बार शांति पाठ क्यों करते हैं !
आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक(आधिदैहिक) शांति हो ! दैविक, भौतिक तथा दैहिक शांति हो !
Let there be Peace in me !
Let there be Peace in my environment !
Let there be Peace in the forces that act on me !
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !

#wish for #peaceofmind through #prayers for #peace in every #religion

- अभय सुशीला जगन्नाथ


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