हाथ में कलम, टेबल पर किताब
कागज़ की किश्ती लिए,
बारिश का इंतज़ार करते,
क्या पता ?
उस गली के मोड़ पर,
जवानी फिर बचपन से जा मिले...
इस फ़िराक़ में,
रोज़ उसी गली के,
सुनसान मोड़ पर,
उसी सूनी खिड़की पर ...
आवारा ! एकटक, निगाह गड़ाए...
आवारगी करते रहते हैं !
कागज़ की किश्ती लिए,
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